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Tuesday, June 8, 2010

"ढाई आखर प्रेम के"

सृष्टि में प्रेम तत्व से जुड़ी चीज़े अधूरी ही होती हैं, या उनमें कहीं न कहीं अधूरापन ज़रूर होता हैं, जैसे ढाई आखर प्रेम के ही ले लो इसका मतलब सिर्फ़ प्यार से बिल्कुल भी नहीं हैं, ढाई आखर प्रेम के होते हैं - सत्य, न्याय, धर्म, कर्म, स्नेह,त्याग,ज्ञान,ध्यान, प्रेम, प्यार, और भी ऐस...े कई शब्दों के उदाहरण आपको मिल जाएँगे.... और इन सब में अधूरापन हैं इसलिए सच्चे प्यार और इससे जुड़ी चीज़े भी अधूरी होती हैं....इसीलिए मुझे लगता हैं की माता सबरी के श्री राम को दिए बेर आधे-आधे थे, श्री कृष्ण और राधा जी का प्रेम भी अधूरा ही रहा, ( राधा जी उनकी 16108 रानियों में शामिल नहीं थी, पर उनका प्रेम अमर हैं )पुर्नमासी के बाद चाँद अधूरा होता हैं, दिन निकालने पर चाँद के बिना चाँदनी भी अधूरी होती हैं.."हर इंसान की अपने चाहने वाले से दूरी हैं, और उनसे हमेशा मिलते रहने की ख्वाइश अधूरी हैं"दूरी आस्था को बड़ा देती हैं, और जब आप किसी की कमी महसूस करते हो वहीं से प्रेम का जन्म होता हैं, इसी लिए प्रेम अनंत से शुरू होकर अनंत पर ही ख़त्म होता, इसका प्रारंभ और अंत कुछ हो ही नहीं सकता जैसे ईश्वर का नहीं हैं, इसीलिए मेरा ऐसा मानना हैं की अधूरेपन के पर्याय को ही प्रेम कहा जाता हैं.....और ढाई आखर प्रेम के सदा अधूरे ही रहेंगे..... !!

"इतिश्री सम्मान सहित"

-मैने बड़ी श्रद्धा के साथ प्रेम पर कुछ लिखने की और उसे जानने की कोशिश की हैं पर इसमें मेरा उद्देश्य किसी की भी धार्मिक भावना को ठेस पहुँचना बिल्कुल भी नहीं हैं. आप सभी से मेरा निवेदन हैं की कृपया इस पर अपनी कीमती राय ज़रूर दे..... धन्यवाद.....-- सादर